Wednesday, January 07, 2009
छोटा शहर, मेरा शहर
लगभग ७ वर्ष छोड़कर सारा जीवन बहुत छोटी सी जगहों में गुजारा है। बहुधा तो इन्हें गाँव भी नहीं कहा जा सकता। बस एक कारखाना और कहीं कुछ सौ तो कहीं केवल एक सौ मकान व उनमें रहने वाले कर्मचारी! जैसे यहाँ एक कारखाना, एक दुकान, एक प्रेस वाला, एक बैंक की शाखा, एक स्कूल, एक चिकित्सा केन्द्र, एक स्पोर्ट्स क्लब और उसी में चलाया जाता एक महिला मंडल। कारखाने को छोड़ दें तो यह सबकुछ आमने सामने, अगल बगल तीन इमारतों में है। भूल गई कि एक मंदिर भी है।
शहर में रहने वाले अपनी पसन्द से जीते हैं, कहाँ काम करेंगे यह उनकी पसन्द, कहाँ कैसे मकान/ फ्लैट में रहेंगे यह उनकी पसन्द, किस दुकान (मॉल)से क्या खरीदेंगे,किससे कपड़े धुलवाएंगे या ड्राई क्लीन/प्रेस करवाएंगे,किस बैंक में खाता खोलेंगे,कहाँ पढ़ेंगे,पढ़ाएँगे,कहाँ किससे इलाज करवाएंगे,कोई क्लब/मंडल जाएंगे या नहीं जाएँगे या जाएँगे तो कौन से यह सब उनकी पसन्द होता है ।
यहाँ जो है उसमें ही जाना है और जाना भी अवश्य है। नहीं जाओगे तो बॉयकॉट करना सा लगेगा। हाँ,यदि बच्चों को छात्रावास में रखकर पढ़वाना है तो छूट है। परन्तु मैं स्वयं ऐसे ही स्कूल में पढ़ी और बच्चों को भी पढ़वाया और ठीकठाक पढ़ ही लिए सब। यदि कोई विशेष खरीददारी करनी हो कहीं बीस तो कहीं ३० कि.मी.दूर के शहर या कस्बे में जाना होता है। वैसे उसमें भी कुछ विशेष तो केवल हमें लगेगा,महानगरों वालों को नहीं।
अजीब सा चित्र बनता है ना मन में! परन्तु चाहे सबकुछ सीमित सा है परन्तु प्रकृति की छटा,खुला आकाश,बिजली पानी,धरती का विस्तार,अपनापन,सुरक्षा की भावना,यह सब सीमित नहीं है। सबसे बड़ी बात है कि चारों ओर साफ सफाई है।
ऐसा जीवन जीने के बाद जब सेवानिवृत्ति का समय पास आने लगता है तो कहीं ना कहीं जाकर रहने का मन बनाना पड़ता है। उसमें भी कई समस्याएं सामने आतीं हैं। सबसे बड़ी समस्या स्थान चुनने की आती है। हम जैसे लोग जो सारा जीवन खानाबदोशों की तरह एक प्रान्त से दूसरे प्रान्त जाते रहे वे किस शहर को चुनें ? उसपर यदि परिवार के सदस्य अलग अलग प्रान्तों के हों तब तो यह निर्णय और भी कठिन हो जाता है। सबसे सरल लगता है कि जहाँ भी हो उसके सबसे नजदीकी शहर में रहो। परन्तु हमारे छोटे शहर! खुली नालियाँ,कचरे के ढेर और उनमें पलते सुअर! फिर भी इन शहरों के दुकानदार,दर्जी,डॉक्टर ही तो जाने पहचाने होते हैं। काश,ये शहर साफ सुथरे भर होते। हम जैसे लोग,जिन्हें सड़क पार करना भी नहीं आता,वे यहाँ रहकर कितने सुखी रह सकते थे! छोटा शहर, छोटी जरुरतें,छोटे खर्चे,सस्ता मकान,बड़े दिल,क्या बढ़िया रहता! वर्षों से मैं ऐसे ही किसी पास के शहर में बसने के स्वप्न देख रही हूँ। ऐसे ही एक शहर की कुछ फोटो मेरी बिटिया ने खींची। देखेंगे तो आप भी पसन्द करेंगे। परन्तु जहाँ के ये चित्र हैं यदि वहाँ की दुर्गंध भी आप सूँघते तो भाग ही जाते! इतने दुर्गंध भरी जगह के देखिए बहुत ही सुन्दर दृष्य!
घुघूती बासूती
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क्या ये फोटो वेरावल की हैं?
ReplyDeleteबहुत अच्छे चित्र खींचे हैं आपकी बिटिया ने, ख़ैर सफ़ाई किसी शहर का एक आदमी तो नहीं कर सकता अपने-2 हिस्से की सबको करनी होती है तभी स्वच्छ समाज और शहर का निर्माण होता है!
ReplyDelete---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम
हम जैसे लोग जो सारा जीवन खानाबदोशों की तरह एक प्रान्त से दूसरे प्रान्त जाते रहे
ReplyDeleteअपनी भी यही कहानी है, फोटो सुन्दर हैं
फोटो बहुत जीवंत आये हैं.
ReplyDeleteहर जगह, छोटी या बड़ी, कुछ अच्छाईयाँ और कुछ कमियाँ है. संतुलन बनाना ही हमारे बस में है.
अच्छी पोस्ट.
काश शहर का नाम भी बताया होता तो इन खूबसूरत तस्वीरों के मार्फ़त एक तस्वीर नाम के रूप में भी दर्ज कर लेते अपने भीतर। "काश,ये शहर साफ सुथरे भर होते।"
ReplyDeleteअगर पहले से बने बनाए न होते को हम भी एक शहर बसाए होते।
ReplyDeleteजगह, छोटी या बड़ी, कुछ अच्छाईयाँ और कुछ कमियाँ है!!...... हर व्यवस्था मे!!!
ReplyDeleteशहर भी लगता है जीवन जैसे ही हैम . थोडी खुशी भी थोडा गम भी. इस शहर के फ़ोटो बडे सुन्दर आये हैं, हम जब सोमनाथ दर्शन करने गये थे तब वेरावल का सीन भी कुछ ऐसा ही लग रहा था. बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteरामराम.
bahut sundar...har jagah thodi khusi thodi gam to hoti he hai....
ReplyDeletephoto sahi men bade sundar aaye hain..
सुन्दर चित्र,हर छोटे ,बड़े शहर में गन्दी और साफ जगह दिखती हैं ...
ReplyDeleteपता नही कहाँ के फोटो हैं पर फोटो हैं बहुत सुन्दर। हर चीज की एक अपनी पहचान होती है बाकी तो बस उसे जुडी होती हैं। जैसे आदमी के साथ उसका ......।
ReplyDeleteहर जगह अच्छाई बुराई दोनों है ..यह चित्र बहुत कुछ कह रहे हैं .
ReplyDeleteघुघूती जी नमस्कार,
ReplyDeleteसबसे पहले तो ये बताओ कि ये फोटो कहाँ की हैं. जैसी भी हैं बढ़िया हैं.
फोटो तो मुझे भी वैरावल का लग रहा है.
ReplyDeleteआपका लेख सार्थक है, सम्मर जी का कहना भी, जो लोग खाना-बदोशों की तरह रहते हैं(मेरे जैसे भी), वो अक्सर इस दुविधा मैं ही रहते हैं
आप भोपाल आकर बस जाइए....इसके बाद कहीं जाने का मन नहीं करेगा! इससे ज्यादा खूबसूरत शहर मुझे कोई नहीं लगता!
ReplyDeleteachha shaher hai apka.
ReplyDeleteacha photo aur acha lekh bhi
ReplyDeleteअभी-अभी द्वारका-सोमनाथ होकर आया हूँ. तसवीरें तो वहीँ के आस पास की लग रही हैं, और मछली की दुर्गन्ध... उंह !
ReplyDeleteछोटे शहर का अपना आनंद है...गुण दोष दोनों ही होते हैं...बहुत अच्छे चित्रों से सजी आप की पोस्ट बहुत अच्छी लगी.
ReplyDeleteनीरज
कुछ भी हो छोटे शहरो मे अपनापन तो है . बड़े शहरो मे तो इंसानियत भी ढूंडनी पड़ती है
ReplyDeleteबहुत सुंदर सचित्र प्रस्तुति है . शहर अपना ही होता है चाहे वह कैसा भी हो यह बात सभी लोगो पर लागू होती है . धन्यवाद्.
ReplyDeleteजितने जीवंत चित्र , उतना सजीव चित्रण । बेहतरीन प्रस्तुति । शहरों में घर छोटे ,दिल तंग और आसमान नदारद होता है । छोटी जगह में बडे दिल वालों के बीच ही जीवन का आनंद आता है ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा जी।
ReplyDeleteबाकी यह तय करना कि कहां रहा जाये बड़ा कठिन सवाल है।
पल्लवी जी,
ReplyDeleteआपने ठीक कहा,
धन्यवाद्.
आप जो भी निर्णय लेँगेँ सोच समझकर ही लेँगेँ यह विश्वास है
ReplyDeleteआज की पोस्ट की सभी तस्वीरेँ जीवँत -सी लगीँ
स्वच्छता पर
ना जाने कब ध्यान देगा भारत ?
काश, जल्द ही हमारे सपनोँ का भारत एक स्वच्छ और सुँदर आकार ले
और विश्व मेँ
सबसे प्रथम बन जाये
हमेँ तो उसी दिन का इँतज़ार रहेगा -
सस्नेह,
- लावण्या
शहरें छोटी हों या बडी गंदगी से भरती जा रही हैं। बबलू भी छोटी ही जगह पर रहता था पर अब जगह उससे छूट गई और बदल भी गई। मेरा ब्लाग- http://babloobachpan.blogspot.com/
ReplyDeleteतस्वीरों में पहले ही तस्वीर खींच दी आपने तो.....और फिर वर्णन.....झूठ क्यूँ कहूँ ....वाकई तथ्यपरक है.....इसमें खूबसूरती भला कैसे होगी.........सच्चाई..... खूबसूरती की मोहताज़ नहीं होती.....नहीं होती ना.....!!
ReplyDeleteतो फ़िर क्या तय रहा ? किधर बसना है!
ReplyDeleteसागर किनारे दिल ये पुकारे कि ये मछुआरों का टोला है...तस्वीरे नयनाभिराम हैं लेकिन गंध तो अंतरजाल पर सूंघी नहीं जा सकती।
ReplyDeleteसुंदर शब्दों में प्रश्न, उत्तर शायद ही मिल पाये क्यूंकि यहाँ सभी हमाम एक जैसे ही हैं.
ReplyDeleteरजनीश के झा
http://rajneeshkjha.blogspot.com/
अरे हमारी टिपण्णी कहां गई???
ReplyDeleteबहुत सुंदर चित्र लगे ओर विवरण भी बहुत अच्छा लगा,लेकिन यह शहर है कोन सा??? क्या भारत मै है? लगता तो भारत मै ही है, क्यो कि इतने तिरंगे जो फ़हरा रहे है,
धन्यवाद
waise ye hai kis jagah ki ,mujhe kuch pahchani si lag rahi hai , phir bhi itna kahna chahunga ki , jagah ka dil se jud jana bahut swabhavik hai .. aur agar kuch emotions us jagah se jude ho to phir kahana hi kya , life time prints ban jaaten hai ..
ReplyDeletemeri badhai sweekaren is post ke liye ..
maine kuch nai nazme likhi hai ,dekhiyenga jarur.
vijay
Pls visit my blog for new poems:
http://poemsofvijay.blogspot.com/
lekh bahut sunder hai. usse v khubsurat hain chitra. ye kaun sa shahar hai.
ReplyDeleteबहुत शानदार....
ReplyDeleteसुंदर तस्वीरें मैम...और बिटिया की पारखी कैमरे की नजर ने प्रभावित किया
ReplyDeleteतस्वीरें सब बढिया हैं...आप समुद्र तटीय बस्ती में रहती हैं ? मुझे लगा कोई वन-प्रांत होगा...
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